समय की धारा में सब कुछ
एक दिन बह जायेगा..!
कान्हा जी की गीता का
उपदेश यह रह जायेगा..!
क्या तू लेकर साथ आया,
क्या तू लेकर जायेगा..!
इस धरा का, इस धरा पर,
सब धरा रह जायेगा..!
मनुज का जीवन मिला है,
तेरा यह सौभाग्य है,
कर ले सबसे प्यार, वरना
हर घड़ी वैराग्य है,
ज़रा सम्भलकर रहना प्यारे,
ज़ालिम बड़ा ज़माना है,
दौलत,शोहरत सब है माया,
सब कुछ छोड़ के जाना है,
जन कल्याण से पुण्य कमा ले,
वरना फिर पछतायेगा..!
इस धरा का, इस धरा पर,
सब धरा रह जायेगा..!
माटी के पुतले हम, सबको
माटी में मिल जाना है,
क्या मेरा, क्या तेरा, सब कुछ
झूठा ताना-बाना है,
दुनिया में कुछ भी सच है तो
वह भगवान की भक्ति है,
प्रभु की लौ से लगन लगाना ही
सच्ची आसक्ति है,
जग को झूठी शान दिखाकर
कब तक मन बहलायेगा..!
इस धरा का, इस धरा पर,
सब धरा रह जायेगा..!
गीतकार, स्वतंत्र पत्रकार, साहित्यकार, मंच संचालक
एवं कार्यकारी सदस्य - महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी,
No comments:
Post a Comment