अखिल भारतीय साहित्य परिषद, उत्तराखंड द्वारा दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'साहित्य में नदी संस्कृति' विषय पर 24-25 सितंबर को हरिद्वार में आयोजित की गई। इसमें 11 प्रांतों से आए 42 आमंत्रित रचनाकारों और शोधार्थियों ने बड़े ही स्पष्ट और रुचिकर ढंग से अपने मौलिक शोध आलेखों को प्रस्तुत किया। ठाणे से सुश्री शीतल कोकाटे ने 'जीवनदायिनी नदी' विषय पर अपना सार्थक शोध आलेख प्रस्तुत किया जो ठाणे सहित महाराष्ट्र के लिए गौरव का विषय है। शोध संगोष्ठी का उद्घाटन उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंंद्र सिंह रावत जी के हाथों हुआ। विषय पर बीज वक्तव्य अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री, श्रीधर पराड़कर जी ने तथा विशिष्ट उद्बोधन केंद्रीय संयुक्त मंत्री, डॉ. पवनपुत्र बादल जी ने दिया। निष्कर्ष रूप में यह कहा गया कि इतिहासकारों ने नदी सभ्यता तो पढ़ाई है, लेकिन यह बात महत्त्वपूर्ण है कि नदियों के किनारे ही अलग-अलग संस्कृतियों का विकास हुआ है। अब समय आ गया है नए भारत के साहित्य को गढ़ने का, भारत की ज्ञान-परंपरा पर आधारित साहित्य को रचने का। हमारे ऋषि-मुनि जो वर्तमान युग के वैज्ञानिक ही हैं, उन्होंने नदियों के किनारे ही जनकल्याण के लिए शोध किए। संस्कृतियों को पल्लवित एवं पुष्पित किया है नदियों ने। इन नदियों को बचाना अति आवश्यक है क्योंकि यदि नदियाँ सूख जाएँगी, तो जीवन सूख जाएगा। इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित होने पर संगोष्ठी में उपस्थित कई मान्यवरों ने युवा रचनाकार, शीतल कोकाटे को बधाई एवं शुभकामना दी है।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद, उत्तराखंड द्वारा दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'साहित्य में नदी संस्कृति' विषय पर 24-25 सितंबर को हरिद्वार में आयोजित की गई। इसमें 11 प्रांतों से आए 42 आमंत्रित रचनाकारों और शोधार्थियों ने बड़े ही स्पष्ट और रुचिकर ढंग से अपने मौलिक शोध आलेखों को प्रस्तुत किया। ठाणे से सुश्री शीतल कोकाटे ने 'जीवनदायिनी नदी' विषय पर अपना सार्थक शोध आलेख प्रस्तुत किया जो ठाणे सहित महाराष्ट्र के लिए गौरव का विषय है। शोध संगोष्ठी का उद्घाटन उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंंद्र सिंह रावत जी के हाथों हुआ। विषय पर बीज वक्तव्य अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री, श्रीधर पराड़कर जी ने तथा विशिष्ट उद्बोधन केंद्रीय संयुक्त मंत्री, डॉ. पवनपुत्र बादल जी ने दिया। निष्कर्ष रूप में यह कहा गया कि इतिहासकारों ने नदी सभ्यता तो पढ़ाई है, लेकिन यह बात महत्त्वपूर्ण है कि नदियों के किनारे ही अलग-अलग संस्कृतियों का विकास हुआ है। अब समय आ गया है नए भारत के साहित्य को गढ़ने का, भारत की ज्ञान-परंपरा पर आधारित साहित्य को रचने का। हमारे ऋषि-मुनि जो वर्तमान युग के वैज्ञानिक ही हैं, उन्होंने नदियों के किनारे ही जनकल्याण के लिए शोध किए। संस्कृतियों को पल्लवित एवं पुष्पित किया है नदियों ने। इन नदियों को बचाना अति आवश्यक है क्योंकि यदि नदियाँ सूख जाएँगी, तो जीवन सूख जाएगा। इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित होने पर संगोष्ठी में उपस्थित कई मान्यवरों ने युवा रचनाकार, शीतल कोकाटे को बधाई एवं शुभकामना दी है।
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