आज का दौर विज्ञान का है
इंसान ने कर लिया है
तकनीकी विकास
बड़ी बड़ी मशीनों से
भेदा जा रहा है
धरती का हृदय।
धरती चीखती है चिल्लाती है
अपने दुख पर झल्लाती है
मगर
इंसान के कान में रूई पड़ा है
वह धरती को खोखला करने पर अड़ा है।
जिस दिन धरती के
लुट जायेंगे सब हीरे मोती
बंजर पड़ जायेगी
धरती की कोख
फिर ना कोई राम जन्म लेगा
ना कोई बुद्ध
चारो तरफ मचेगी हाहाकार
छिड़ जायेगा
कभी न खत्म होने वाला
भीषण युद्ध।
तुम जागो कि तुम्हे जागना होगा
धरती माता की रक्षा में
अपना अधिकार मांगना होगा।
मांगना होगा हरा-भरा उपवन
मांगना होगा खिलखिलाता जीवन
मांगना होगा पर्वत पहाड़
तुम जागो कि तुम्हे जागना होगा।।
कवि योगेन्द्र पाण्डेय
No comments:
Post a Comment