नवी मुंबई मनपा चुनाव कराने में इतना विलंब क्यों? - भारत संवाद

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Thursday, June 16, 2022

नवी मुंबई मनपा चुनाव कराने में इतना विलंब क्यों?

गणेश नाईक को मनपा से बेदखल करने के लिए विरोधी पार्टियां क्यों हो रही लामबंद


रमाकांत पांडेय
नवी मुंबई: पिछले लगभग दो साल से नवी मुंबई मनपा में नागरसेवको का कार्यकाल ठप पड़ा है, जिसके कारण शहर के विकास कार्यों पर ब्रेक लगा हुआ है। कोरोना महामारी की वजह से मनपा का चुनाव नही हो पाया लेकिन अब क्या कारण है कि अभी तक चुनाव की घोषणा नही की गई है। कहीं मनपा के विरासत की सियासत का खेल तो नही शुरू है,आखिर क्या वजह है कि नवी मुंबई महानगर पालिका चुनाव को आगे धकेला जा रहा है।

कोरोना महामारी के दौरान नवी मुंबई की राजनीति में भारी उलट फेर हुआ। गणेश नाईक ने शरद पवार का साथ छोंड़कर भाजपा का दामन थाम लिया, हालांकि वे अकेले नही करीब 54 नगरसेवकों के साथ भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय नवी मुंबई से एनसीपी का जैसे पूरी तरह सुपड़ा ही साफ हो गया। जबकि नवी मुंबई की मनपा पर एनसीपी यानि गणेश नाईक की बिगत कई वर्षों से सत्ता चली आ रही है। राज्य में एनसीपी-कांग्रेस की सत्ता क्या बदली गणेश नाईक के ऊपर जैसे किसी की क्रुरदृष्टि पड़ गई। आखिरकार उनको मजबूर होकर भाजपा का दामन थामना पड़ा।

*गणेश नाईक का आखिर एनसीपी से क्यों हुआ मोहभंग!* 

गणेश नाईक एनसीपी में रहते हुए ठाणे जिला के पालकमंत्री थे तब बेलापुर स्थित रेती बंदर में बने विशाल ग्लास हाऊस में कभी कभार दरबार लगाते थे, उसके अलावा पावने स्थित बावखलेश्वर मंदिर प्रांगण में पार्टी कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों की समस्या सुनते थे।परंतु गणेश नाईक के खिलाफ हवा का एक ऐसा झोंका चला कि सब कुछ धराशायी हो गया। रेती बंदर पर बने विशाल ग्लास हाऊस को अवैध करार देते हुए न्यायालय के आदेश पर तोड़ दिया गया। उस समय राज्य में भाजपा-शिवसेना की सरकार थी। उसके बाद जब एमआईडीसी में गणेश नाईक के द्वारा बनाए गए विशाल बावखलेश्वर मंदिर पर प्रशासन और विरोधी दल की  नजर टेढ़ी हुई तो नाईक परिवार महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक का परिक्रमा किया फिर भी कोई राहत नही मिली, इससे तो यही लगता है कि शरद पवार भी बावखलेश्वर मंदिर पर होने वाली कार्रवाई को नही रोक पाए! शायद यही कारण है कि गणेश नाईक को पार्टी बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा? 

मनपा चुनाव की घोषणा नही करने के पीछे आखिर राज क्या है?

पिछले लगभग 20 साल से नवी मुंबई महानगर पालिका पर गणेश नाईक का एकक्षत्र राज था, शिवसेना में थे तब भी मनपा की कमान उनके हांथ में थी और जब एनसीपी में शामिल हुए तब भी उनका ही मनपा पर अधिकार था। लेकिन जैसे ही एनसीपी छोंड़कर भाजपा में शामिल हुए कि उसके बाद से उनके कट्टर समर्थक कहे जाने वाले कई नगरसेवक उनसे दूर भागने लगे,दूसरे पार्टियों में शामिल होने लगे, हालांकि दूसरे अन्य पार्टियों के कद्दावर नगरसेवक गणेश नाईक के साथ भी जुड़े, परंतु सत्ता में महाविकास आघाड़ी की सरकार होने के कारण गणेश नाईक को घेरने की तैयारी की जा रही है। फिलहाल चुनाव नजदीक आने पर अभी तो भारी फेरबदल होने की संभावना है। परंतु चुनाव की घोषणा नही होने से नवी मुंबई  का विकास कार्य पर विराम लग गया है। हालांकि प्रभाग रचना का कार्य संपन्न हो चुका है, इस बार का चुनाव काफी अलग होगा चूंकि तीन वार्ड को एक प्रभाग कर दिया गया है। परंतु इस प्रभाग संरचना से गणेश नाईक नाराज हैं, इसलिए उन्होंने हाल ही में नाराजगी जताते हुए प्रभाग रचना को रद्द करने की बात कही है। 

नवी मुंबई मनपा चुनाव में महाविकास आघाड़ी क्या एकसाथ चुनाव लड़ेगी ?

इस बार मनपा की सत्ता हथियाने और गणेश नाईक को उखाड़ फेंकने के लिए सभी पार्टियां लामबंद हो गई हैं। किसी भी कीमत पर नवी मुंबई मनपा से भाजपा यानि गणेश नाईक को बेदखल करने के लिए शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पूरी ताकत झोंक दिया है। कद्दावर नेताओं का नवी मुंबई में आवाजाही बढ़ गई है। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि क्या तीनो पार्टियों में सीट को लेकर सहमति बन पाएगी? कांग्रेस अपने उम्मीदवार उतारना चाहेगी तो एनसीपी ज्यादा सीट की मांग करेगी और शिवसेना सबसे ज्यादा सीट की डिमांड करेगी, ऐसे में क्या महाविकास आघाड़ी का एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ पाना संभव है! 

भाजपा के साथ अगर मनसे भी चुनावी मैदान में उतर गई तो क्या होगा !

अगर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कहीं भाजपा से हांथ मिला लिया तो चुनावी गणित बदल सकती है, मनसे कार्यकर्ता भी इस समय नवी मुंबई में कमर कस रहे हैं। लेकिन यह अलग बात है कि मनपा पर किस पार्टी का झंडा फहराएगा। हालांकि गणेश नाईक भले ही अकेले पड़ गए हैं परंतु उन्हें विरोधी पार्टियां हल्के में नही आँक रही है, क्योंकि गणेश नाईक की चुप्पी भी विरोधियों की बौखलाहट बढ़ाती है, चूंकि वे राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। उनकी तरकस में अभी कितने तीर बाकी हैं इसका अंदाजा तो शायद उनके सबसे करीब रहने वाले ब्यक्ति को भी नही होगा। मनसे प्रमुख राज ठाकरे अगर हिंदुत्व का चेहरा लेकर चुनावी मैदान में उतर गए तो विरोधियों को नाको चने चबाना पड़ सकता है। खबर तो यह भी है कि गणेश नाईक को कमजोर करने के लिए मनपा मुख्यालय में कार्यरत गणेश नाईक के नजदीकी अधिकारियों को हटाकर सत्ताधारी अपने करीबी अधिकारियों को लाकर बैठा रहे हैं !  

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